वो जो विज्ञापन में सूट टांग रक्खा है वो मैं हूं,
मुझपर खाक अन्दर सब बिक गए जो बचा वो मैं हूं।
वो जो विज्ञापन में सूट टांग रक्खा है वो मैं हूं,
मुझपर खाक अन्दर सब बिक गए जो बचा वो मैं हूं।
मैंने मज़ाक में नहीं पूछा तस्वीर ले जाकर क्या करोगे,
गर दिल में बसाना है तो दीवार पर टांगकर क्या करोगे।
फल टूटने के बाद वृक्ष को फल याद नहीं रहता,
मुझमें और वृक्ष में सिवाय इसके कोई अन्तर नहीं रहता।
मेरे अंदर भी एक जंगल रहता है
कोई शहर नहीं रहता।
मुद्दतों से एक श्मशान है मेरे शहर में,
यहां बसने वाला खप जाता है बसाया नहीं जाता।
वसीयत पढ़कर बांट दी जब कुनबे को,
मैं अकेला बच गया फिर आदमी कहीं का नहीं रहता।
जब तक्सीम हुई तो मेरा एक भाई उधर रह गया,
जंग हुई तो बस कब्रिस्तान और श्मशान था, आदमी आदमी नहीं रहता।
संगम पर कुछ लोगों को सरस्वती नज़र नहीं आई,
हम तो साथ ले आए, कुछ को नज़र नहीं आई।
ये जो झगड़े की एक आदत सी हो गई है,
नये साल में कुछ नया करते हैं चलो प्यार करते हैं।
मैं तो मरा हुआ हूं बस जी कर देख रहा हूं,
फिर वापिस हो जाऊंगा टहल कर देख रहा हूं।
मज़ार के भीतर का दीया तो बुझ चुका है,
मैं तो मज़ार पर दिया जलाकर देख रहा हूं।
अब मुझसे इन्तज़ार नहीं होता,
दिल-ए-बेकरार से सब्र नहीं होता।
शराब सामने रख कर कहता है तौबा!कर
वाईज़ कुछ अपवाद हैं जहां अर्थ शास्त्र नहीं होता।
जब वो ख्वाब में भी मिला तो नाराज़ ही मिला,
ये भी सच है कि मुझे हीरा पत्थर ही मिला।
इश्क में धोखा खाए आशिकों की क्या कहिए,
लाख पत्थर मारे फिर भी वो शीशा साबुत ही मिला।
सागर हो नदी हो चुल्लूभर पोखर हो,
वो सब मेरे जाम में पानी भरते हैं।
मेरी प्यास भी अजीब है, सूखा कुछ नहीं है,
बियाबान में शराब देख लूं तो फूल झरते हैं।
मां
वो मैले कपड़े धोती रही बर्तन मांजती रही उम्र भर,
उसके हाथों की मैल का कर्ज़ा मुझपर रहा उम्र भर।