बेफिक्र रहने की आदत सी हो गयी है
उसपर इन्तज़ार बेइन्तहा है ताउम्र साथ देगा।
वो मुझसे मेरे प्यार की लागत पूछता है,
पूछता एसे है जैसे कोई कीमत चुका देगा।
तसल्ली हुई ये सुनकर के वो अब खिड़की खुली रखता है, गाहे-ब-गाहे पूछना,कोई हमारा रस्ता भी बता देगा।
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