(बेटियों को समर्पित)
क्या तितली को कभी तुमने उड़ते हुए ‘गौर’से देखा है,
वो किस फूल पर बैठेगी, ये उसके चुनाव में नही है।
वो उड़ती हवाओं के रूख से है, एक भाव मस्ती का है,
हर फूल उसे चाहता है, पर उसके हाथ में कुछ नहीं है।
मन तितली सा है, पर तितली नही है,
न जाने किस रंग पे मर जाए, चाहें जीवन का नहीं है।
हर निगाह में बसती है, कभी ख्याल बनकर उड़ती है,
पंचायतों की मर्ज़ी के बिना, उसका कोई बसेरा नहीं है।
वो बादशाह था तो मान लिया, प्यार में ताजमहल बना,
प्यार में और भी कहॉनियां है,और कोई मकबरा नहीं है।
सोने की छुरी है तो कोई अपने पेट में मार नहीं लेता,
ज़िन्दगी कला है, जुए में युधिष्ठिर कभी जीता नही है।
कश्ती वहीं खेहना जहॉ भंवरों के बवण्डर नही होते।
खुश्क इलाकों के पौधे बरसात में हरे भरे होते नही है।
वरना ये कुंठित खापों की वो अमर बेल है
जिस पेड़ पर चढ़ी है
वो वृक्ष मरनेवाला है अमर नहीं है।