बेटियां

      (बेटियों को समर्पित) 

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क्या तितली को कभी तुमने उड़ते हुए ‘गौर’से देखा है,
वो किस फूल पर बैठेगी, ये उसके चुनाव में नही है।
वो उड़ती हवाओं के रूख से है, एक भाव मस्ती का है,
हर फूल उसे चाहता है, पर उसके हाथ में कुछ नहीं है।

मन तितली सा है, पर तितली नही है,
न जाने किस रंग पे मर जाए, चाहें जीवन का नहीं है।
हर निगाह में बसती है, कभी ख्याल बनकर उड़ती है,
पंचायतों की मर्ज़ी के बिना, उसका कोई बसेरा नहीं है।

वो बादशाह था तो मान लिया, प्यार में ताजमहल बना,
प्यार में और भी कहॉनियां है,और कोई मकबरा नहीं है।
सोने की छुरी है तो कोई अपने पेट में मार नहीं लेता,
ज़िन्दगी कला है, जुए में युधिष्ठिर  कभी जीता नही है।

कश्ती वहीं खेहना जहॉ भंवरों के बवण्डर नही होते।
खुश्क इलाकों के पौधे बरसात में हरे भरे होते नही है।

वरना ये कुंठित खापों की वो अमर बेल है
 जिस पेड़ पर चढ़ी है
वो वृक्ष मरनेवाला है अमर नहीं है।

आप सभी को होली की शुभ कामनाएं

होली पर सब को शुभ कामनाएं रगं तो सबको प्यारे हैं अपने रगं का एक तिलक इधर भी। गालिब* के  इस शेर से होली शूरू करता हूं वो होली तो अब होली, क्या होली हुआ करती थी। *अब तो न जाने होली कब हुआ करती ह…

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आप सभी को होली की शुभ कामनाएं

होली पर सब को शुभ कामनाएं
रगं तो सबको प्यारे हैं अपने रगं का एक तिलक
इधर भी।

गालिब* के  इस शेर से होली शूरू करता हूं
वो होली तो अब होली, क्या होली हुआ करती थी।

*अब तो न जाने होली कब हुआ करती है,
पहले तो फाल्गुन मे हुआ करती थी।

हाथ मलते रहे हथेलियों में रगं फाख्ता से हो गये,
हिना पत्थर से कह रही थी तेरी बात कुछ और  हुआ करती थी।

बहुत कम मौके आते हैं कोई रंगे कुछ, चड़े कुछ जवानी में,
मै तुझको सराहूं तू मुझे निहारे, जब दो दिल एक जान हुआ करती थी।

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बड़ी अजीब सी बात है

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बड़ी अजीब बात लगी  उसे चराग की रौशनी कम लगी,
अन्धेरों मे फर्क होगा शायद, तेरी ये दलील अच्छी लगी।
एक दरार पड़ने से अलग हुए, थे तो हम एक ही,
पहले जुदा किया, फिर कौन आज़ाद हुआ, तारीख भी अलग लगी। (on freedom India )।

मेरा अपराध मुझे इतनी तसल्ली दे गया था उसकी बेरूखी से पहले,
जब उनकी बेजा हरकतें मेरे पश्चाताप पर भारी पड़ने लगी।

JNU का कन्हैया

       JNU का कन्हैया
एक कन्हैया जे एन यू में, सुदामा बनकर आया है,
झाड़ पे चढ़के चने खा गया, अब सियासत का उसे चबैना चाहिए।
कन्हैया मथुरा में रहना है तो राधे राधे कहना पड़ेगा,
तर्को पर महाभारत हो सकती है, रामायण के लिए भक्ति समर्पण चाहिए।

कल रात एक ‘शख्स’ कन्हैया बन मेरे मयखाने मे आया, मुरली नहीं लठैत कने था।
वो बोला ‘शराब’ मुझे स्टील के गिलास में चाहिए।
मैं पानी चाहे पैमाने मे पी लूंगा, पारदर्शन के लिए
वामपंथ को चरम पंथी नैतिकता का हिसाब चाहिए।

पंथ तो कई है, भीड़ पथिक थी उस कैन्टीन में,
JNU ‘जे(छोरा) नु उगला’ इबके, साथ नारा कोई असरदार चाहिए।

खुले मे शौच की ‘अाजादी’, खुली हवा मे आज़ादी,
माल्या विदेश लूट ले गया, हमसे जुर्माना चाहिए।

तिजारत पर सियासत,कोई स्याना विभीषण चाहिए,
अपने यहां इतने नादान हैं यारों जहॉ जंजाल भी विदेशी चाहिए।

मैने वो सब सबक सीखे..

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मैने वो सब सबक सीखे, बर्दाश्त करने के
सुना अनसुना करना, ध्यान न देना,
दुस्वपनों से दूर
किसी एक सुनसान पहाड़ी पर
गुफा होना,
पर उन यादों का क्या करूं
जो अनायास चिकौटि काटती हैं

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मयखाने में आलमी चर्चा – पार्ट 3

मयखाने में आलमी चर्चा : पार्ट 3

मेरे ऑसुओं पे बनी तेरी तस्वीर जल्दी मिट न पाएगी,
ये सिलसिला नदियों का समुन्द्र तक जाएगा।
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जो लोग मुझे रोज़ मिलते हैं उनके नाम याद नहीं
रहते  हैं,
जिनकी नाम से याद आती है वो कहीं और चल बसे हैं।
मेरे ठण्डे बस्ते में पड़ी किताबों के वो सब सबक याद आने लगे,
नसीहतों के थपेड़ों ने जब ज़िन्दगी पर अपने शिकंजे कसे हैं।
……………….

मुझे कभी खुशी मे न मिलना मैं बहक जाता हूं,
एकदम से माहौल बदले तो दिल बैठने सा
लगता  है।
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मुझे कुछ इल्जाम अपने सर लेने दे
टुकड़े और टुकड़ों में बंट जाने दे,
फिर एक हिस्से ने दुसरे हिस्से को एसे तसल्ली दी है,
जैसे उखड़ती सॉसें, आपस में ढॉढस बंधा रहीं हों – जाने दे रहने दे।
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जो दरारे भर चुकी हैं उनके निशान बाकी है अभी
ये बारिश का पानी तबसे किन कोशिशों में लगा है
मै भी घरसे बाहर निकला था साथ निभाने केलिए
मेरे मुकाबिल*था जो बरसता बादल  अब मुझसे जलने लगा है।
*मुकाबिल – विरूद्ध, सामने।

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इन्तजार की सड़क पर सिर्फ वक्त को गुज़रने की इजाज़त थी,
जब से वो देख के गुज़रा है समय भी कुछ रूक सा गया है।