Long ago I have written this story of mine. And after a long time my wife once again admitted to Hospital.
So I repost this story with WordPress
मेरी आप बीती जो
जी है हमने, बिताई नहीं है।
बड़े सलीके से पैंठ *
पसारी है हमने पसरी नहीं है ।
“सुनो जी, कहीं घूमने चलते हैं”
“अब क्या हुआ इस बार कुछ जल्दी याद कर लिया, दर्द फिर शुरू हो गया क्या।”
भगवान अल्सर दे भी तो नापकर, छोटा या इतना कि जो अफोर्ड किया जा सके।
हमारे साथ तो कुछ ऐसा ही है। शादी के पच्चीस साल हो गये। बस हाथ नहीं फैलाए किसी के आगे।
ऐसा भी नहीं कुछ लोगों ने, रिश्तेदारों ने हेल्प नहीं की। उन सभी का शुक्रिया।और शुक्रिया उस परवरदिगार का। कि
बीमारी में इन्तजा़म की कोई कमी नहीं रक्खी,
ए खुदा तूने हमें कैसे जूझने के काबिल बना दिया।
वर्ना कौन परवाह करता है किसी कि आजकल।
ये अल्सर भी न ठीक समय पर बढ़ता था। इधर कुछ छुट्टी और पैसा इकट्ठा हुआ। उधर उसका आउटिंग का मन हुआ। उसका हिल्ल स्टेशन पर मन होता था तो हमें बैड टाप फ्लोर पर ही मिलता था। सामने अरावली हिल्स सी फील आती थी हरियाली वैसी ही बिल्कुल लश-ग्रीन। पेड़ चाहें किकर के ही थे पर आखों को चुभते नहीं थे। सभी किकर हरे रंग के पर अदभुद था हजारों पेड़ पर हरेक का अपना एक अलग हरा रंग था। शुरु से हम शंकर रोड के इर्द गिर्द ही रहे फिर वो चाहें रिहाइश हो या उसपर बसा वो सर गंगाराम हस्पताल हमने छोड़ा नहीं।
अब रिटायर हो गये हैं आमदनी के नामपर पैन्शन है। हम अब जमुनापार बस गये हैं।
क्या दिन थे।
कहावत है अच्छे दिन नहीं रहे तो बुरे भी नहीं रहते।
पर उस परवरदिगार का लाख-२ शुक्रिया ये समझाने के लिए कि बड़ी बिमारी से बचना है तो अपनी आमदनी कम रखियो। ये बिमारी उस बिगड़े बच्चे की तरह है कि खुल्ला मिले तो बिगड़ जाती है।
भगवान कितनी बारिकी से सबका ख्याल रखता है उसकी सबसे बड़ी मिसाल हम दोनो है। हमारे केस में खुदा ने कोई कंजूसी नहीं बरती कोई कोताही नहीं बरती। इधर हम कभी उसे गलती से भूले उधर उसने ही याद दिलवाया हमें।
अब हम उसे सुख में ही याद करते हैं।
इस बार चूक नहीं हुई थी कहीं और घूमने चले गये थे।
शायद जो पैसा घूमने में खर्च किया प्रावधान (provision)के विरूद्ध कर दिया।
E & O E
Thanks God
*पैंठ -. एक खोई हुई हुंडी के स्थान पर लिखी हुई दूसरी हुंडी