आदमी आदमी नहीं रहता‌‌

फल टूटने के बाद वृक्ष को फल याद नहीं रहता,
मुझमें और वृक्ष में सिवाय इसके कोई अन्तर नहीं रहता।
मेरे अंदर भी एक जंगल रहता है
कोई शहर नहीं रहता।
मुद्दतों से एक श्मशान है मेरे शहर में,
यहां बसने वाला खप जाता है बसाया नहीं जाता।

वसीयत पढ़कर बांट दी जब कुनबे को,
मैं अकेला बच गया फिर आदमी कहीं का नहीं रहता।
जब तक्सीम हुई तो मेरा एक भाई उधर रह गया,
जंग हुई तो बस कब्रिस्तान और श्मशान था, आदमी आदमी नहीं रहता‌‌।

मैं तो मरा हुआ हूं बस जी कर देख रहा हूं,

मैं तो मरा हुआ हूं बस जी कर देख रहा हूं,

फिर वापिस हो जाऊंगा टहल कर देख रहा हूं।

मज़ार के भीतर का दीया तो बुझ चुका है,

मैं तो मज़ार पर दिया जलाकर देख रहा हूं।

शराब सामने रख कर कहता है तौबा!कर

अब मुझसे इन्तज़ार नहीं होता,

दिल-ए-बेकरार से सब्र नहीं होता।

शराब सामने रख कर कहता है तौबा!कर

वाईज़ कुछ अपवाद हैं जहां अर्थ शास्त्र नहीं होता।

लाख पत्थर मारे फिर भी वो शीशा साबुत ही मिला।

जब वो ख्वाब में भी मिला तो नाराज़ ही मिला,

ये भी सच है कि मुझे हीरा पत्थर ही मिला।

इश्क में धोखा खाए आशिकों की क्या कहिए,

लाख पत्थर मारे फिर भी वो शीशा साबुत ही मिला।

मेरे जाम में सभी पानी भरते हैं।

सागर हो नदी हो चुल्लूभर पोखर हो,

वो सब मेरे जाम में पानी भरते हैं।

मेरी प्यास भी अजीब है, सूखा कुछ नहीं है,

बियाबान में शराब देख लूं तो फूल झरते हैं।