वक्त गठरी सा ठहर गया, कॉधे से बोझ उतार कर, सर पर हरियाली लिए पैरों में दश्त,
ए दिल चल दो चार दिन, यहॉ भी गुजारकर।
नदिया के उस पार गया, क्या परदेसी खो गया,
बदली सी जब छा जाए, कुछ बादल सा बर्ताव कर ।
वो आता था तू मिलने, सब छोड़छाड़ कर,
मुश्किले आसानकर, कोई मौसम सा जुगाड़कर।
उजड़ना कौन चाहता है, मेरी तो आदतों में शुमार है
बस इक फलसफा अनसुलझा है बंजारों के पड़ाव पर।
मन बसने नहीं देता, दिल उजड़ने नहीं देता,
कुछ ठूंठ उम्मीदे बाकी है, रसद का इन्तज़ारकर।
तू समझता नहीं है, पर सुनतें हैं,वो सबकी सुनता है,
वाईज़ एक कामकर, तू जाके अज़ान* कर।
मौत के दिए तले, वाइज़ ने जन्नत का वज़ीफा रख दिया
वो खुद मेरी रूखसती के बाद सोया, जन्नत का इन्तजाम कर।
दोज़ख में भी रक्खे हैं रब ने कुछ पढ़ने पढ़ाने वाले लोग,
सब की हॉ में हॉ है, तू भी मुगालतों का एहतराम* कर।
*अज़ान =इस्लाम में नमाज़ के लिए बुलाने के लिए ऊँचे स्वर में जो शब्द कहे जाते हैं …
मुगालता =गल्तफहमी
एहतराम=आदर Flattery will get you nowhere is a phrase often used to tell someone that no matter … A Big List of Cliches and Idioms …