सर पर हरियाली लिए पैरों में दश्त   ए दिल चल दो चार दिन यहॉ भी गुज़ारकर

वक्त गठरी सा ठहर गया, कॉधे से बोझ उतार कर,             सर पर हरियाली लिए पैरों में दश्त,   

ए दिल चल दो चार दिन, यहॉ भी गुजारकर।

नदिया के उस पार गया, क्या परदेसी खो गया,
बदली सी जब छा जाए, कुछ बादल सा बर्ताव कर ।
वो आता था तू मिलने, सब छोड़छाड़ कर,
मुश्किले आसानकर, कोई मौसम सा जुगाड़कर।

उजड़ना कौन चाहता है, मेरी तो आदतों में शुमार है
बस इक फलसफा अनसुलझा है बंजारों के पड़ाव पर।

मन बसने नहीं देता, दिल उजड़ने नहीं देता,
कुछ ठूंठ उम्मीदे बाकी है, रसद का इन्तज़ारकर।

तू समझता नहीं है, पर सुनतें हैं,वो सबकी सुनता है,
वाईज़ एक कामकर, तू जाके अज़ान* कर।

मौत के दिए तले, वाइज़ ने जन्नत का वज़ीफा रख दिया
वो खुद मेरी रूखसती के बाद सोया, जन्नत का इन्तजाम कर।

दोज़ख में भी रक्खे हैं रब ने कुछ पढ़ने पढ़ाने वाले लोग,
सब की हॉ में हॉ है, तू भी मुगालतों का एहतराम* कर।

*अज़ान =इस्लाम में नमाज़ के लिए बुलाने के लिए ऊँचे स्वर में जो शब्द कहे जाते हैं …
मुगालता =गल्तफहमी
एहतराम=आदर Flattery will get you nowhere is a phrase often used to tell someone that no matter … A Big List of Cliches and Idioms …

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                      छननी : Filter
कितने ज़ख्म लिए सीने पर, तब जाके कुछ काबिल बना,
ये दामन जो पाक साफ है, इस में सुराख बहुत हैं।
सवाल छने जवाब छने, ज़रा किताब डालिए,
इन हाशियों से परे, जमा के हासिल बहुत हैं।

मेरे अच्छे होने का सबूत इसी हाल से न लगा, ये तस्वीर तो तब की है जब मैं बीमार था।

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Its a High-tide time, see शोर on Marine Drive

मेरे अच्छे होने का सबूत इसी हाल से न लगा,
ये तस्वीर तो तब की है जब हम बीमार हुआ करते थे।

समुन्दर को गहराई से उतार कर पीछे रख दिया मैने,
बहुत जोर लगाना पडता था उसे हम तक पहुंचने में जब हम सड़क पर हुआ करते थे।

अभी तो ले जाने आया है, पर कहते हैं समुन्दर सब लौटा देता है,
आज मै जिन्दा में कुछ वो लौटाने आया हूं, जो कभी अस्थि हुआ करते थे।

Hand in hand:Against the dowry

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              हाथों में हाथ ये कैसा साथ
  जब एक हाथ दूसरे का खरीदा हुआ लगता है।

एक को पैसे की ज़रूरत थी, दूसरे को प्रतिष्ठा की
समाज में बाबुल नैहर से ही हारा हुआ लगता है।

जिसको पैसे की जरूरत थी उसे पैसे मिले,
पर वो आज बिका हुआ सा महसूसा करता है।

जिसको प्रतिष्ठा की ज़रूरत थी, भरपूर इज्ज़त सी मिली,
पर वो शादी के जोड़े में लुटा हुआ सा लगता है।

शादी के साल या कुछ साल बाद का जन्मा बचपन,
होनहार ही होता है, न कि दहेज की प्रथा सा लगता है ।

If you hesitate..नफरत प्यार से चुनना, जिसे शूगर हो उसे गुड़ देना, ज़हर मत देना।

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If you hesitate हिचकिचाहट = हिचकि/आहट

कुछ तो है जिसका यहीं फैसला करना है,
मुश्किल बहुत होगा दिल और दिमाग के बीच पैरवी करना ।
हिचकी अलग, आहट का अलग से खटकना,
दिल से जो निकले उसके हक मे फैसला करना।

अगर ज़रा सी भी दूविधा है तो
मेरी राय है सुविधा चुनना।
मंजिलें पुख्ता अगर चाहिए
तो राहें मुश्किल चुनना।

मेरे भगवान का पत्थर की मूर्ती मे वास करना,
मेरे विश्वास का मेरी मुश्किलों में निवास करना।

Old-age home:वृद्धाश्रम

आशीशें सम्भाल कर रखते तो अच्छा था,
क्यों अनुभवों को वृद्धाश्रमों में छोड़ा जाए।image

मैं इतना भौतिक* हो चुका हूं एक सामान की तरह
और सोचता हूं इस बार किसे घर से निकाला जाए।

बड़े सालों बाद बचपन वाले मॉ-बाप याद आए,
अपने जन्मदिन पर वृद्धाश्रम से किसी बूढ़े दम्पति को खानेपर बुलाया जाए।

खुलकर रोना भी चाहता है छुपाना भी चाहता है,
मौका है चलो बारिश के मौसम में, खुले में नम ऑखों से बरसा जाए।

*भौतिक materialistic

Image 66.jpeg] मूर्ती पूजा

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[Image 66.jpeg]
भक्ति से तपस्या से
ध्यान में उतारा जिसे,
अनुभूती को शक्ल में ढाला
तो वो पत्थर हो गया।

चकमक पत्थर के टकराने से,
निकली एक चिंगारी और
प्रकाश दे गई।
ठोकर खाकर. सम्भलना मेरा
सार्थक हो गया।

[ कुछ तो ऐसा कर जो होके भी बाकी रहे, अधूरी न रहे, पूरा होने में अभी भी निखरने की गुंजाइश छोड़ी है। 51.jpeg]

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[Image 51.jpeg]
कुछ तो ऐसा कर जो होके भी बाकी रहे, अधूरी न रहे,
पूरा होने में अभी भी निखरने की गुंजाइश छोड़ी है।

गोर* तलब है, और तसल्लियॉ मरने नहीं देगी,
हम भी इन्तजाम कर चले, पिछवाड़े रूदालियॉ रख छोड़ी हैं।
बहुत ताकत लगती है जब रोऑ रोऑ रोता है,
कुछ सहूलतें बुजुर्गो* ने सरकार से मॉग छोड़ी हैं।

गोर-कब्र
बुज़ुर्ग- senior citizen
रूदालियॉ- किराए पर रोने वालियॉ

दर्द का साया पीछा छोड़ता ही नहीं, लोग आव-भाव से उसका वुज़ूद तौलते हैं।चॉद सा चेहरा सामने रखो, नज़र सबकी लटों से उतारते हैं।

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हर तरफ आइने हैं मेरा अक्स मुझमे फर्क देखता है,
मैं सवंरता हूं तो लगता है कोई मुझे बना रहा है।

किस पर विश्वास करूं, साए पर या धूप पर,
इक अन्धेरा है चुपचाप मुझे रात से बिता रहा है।

हाल मत पूछ, दर्द बढ़ता है मेरा दौहराने से,
बरसात में कोई चोट पुरानी उभरने को है प्रतीत हो रहा है

सूरज जब निकले वो रात चाहता है, उसपर वो सूरज से गवाही और मुआवजा चाहता है।

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प्यार का संसार, एक आसमान मेरी छाँव चाहता है,
दिल का धड़कना, दो बॉहों में समेटना चाहता है ।
गुस्से का हक है उसे जो अपना समझे,
जंजाल दुनिया भरका न हो और नादॉ से दोस्ती भी चाहता है

प्यार में वो गारंटी मॉगता है और
समझौता दिल का कागज़ पर चाहता है।
हमने दिल पर हाथ रखकर शपथ ली,
तू दिन को रात कहे  वो रात कहता  है।
सूरज जब निकले वो रात चाहता है,
उसपर सूरज से बेगुनाही का मुआवजा चाहता है।
ये इश्क है कोई पूछे तू कौन,
मैं खॉमखा ! और अपने हक में फैसला चाहता है।
वो साथ है, नींद कहॉ आती है और
जब वो दूर हो तो नींद को सिरहाने चाहता है।

ये इश्क है पगले, अन्धा है
जो तू भी न देख सके, वो वही बखेड़ा चाहता है।

बात कही, सुनी जाती है
नादान से कहा-सुनी कौन चाहता है।
दूर तक साथ मौहब्बत की चॉदनी चले
कुछ ढोर सी का फासला पकड़कर देखना चाहता है।
मै ऑख बन्द करता हूं तो दिखता है
खोलूं तो नदारद,
तू खुदा है तो ये भी कर
इसको सम्भाल,
मेरा दिल क्यों बैठना चाहता है।