एक और सच्चा किस्सा
स्कूल के दिनो की बात है। मास्टर जी बोले कल “धर्म” विषय पर चर्चा होगी कुछ लिख कर लाएं।
लेख हो कविता हो कुछ भी जो रुचिकर हो।
दूसरा दिन
मास्टर ने कहा कल जो काम दिया था उसपर चर्चा आज नही कल करेंगे। आज हिन्दी कविता में ‘दिनकर’ पर काव्य पाठ करते हैं। सो काव्य संकलन की किताब निकालिए। अब मुसीबत खड़ी हो गयी। ३० लड़को में लगभग 5 या 6 लड़के ही किताब लाए थे। तो कक्षा मे अफरा तफरी मच गई। जो दो जनो का डैस्क था उसपर पांच पांच लड़के सटकर बैठ गए।
मास्टर समझ गये और गुस्से से बोले “कौन कौन किताब नहीं लाया। 30 में से लगभग 25 के हाथ खड़े थे। गिनना मुश्किल हो रहा था। तो एक लड़का बोला सर जो किताब लाए हैं उनके हाथ खड़े करवाइये। जल्दी हो जाएगा। टीचर ने घूर कर देखा बोले चलो ऐसा ही करते हैं।
तो पता लगा केवल 5 लड़के ही किताब लाए हैं।
तभी वो लड़का धीरे से बोला “अब इन्हे डण्डे मारिये”।
फिर तो जो न होना था वो हुआ। एक एक को जो मार पड़ी है बस जैसे तारीख में दर्ज हो गया।
पीरियड खत्म होने के बाद मैने आज के लिए धर्म
पर जो लिखा था वो सर को दे दिया।
वो जो भी था बच्चन की मधुशाला से प्ररित था।
” मयखाने ने जात न देखी, रंग न देखा।
न पूछा किस गांव का, किस घर का जाया है।
“वाइज़ पूछ रहे थे मयख़ाने में कि कौन कौन बेवफाई का शिकार है”
मैं भी हाथ खड़ा करके बोला जैसे बालपन में
“कि सभी बच्चों ने नमाज़ तो पढ़ी है पर कोई किताब नही लाया है.”
सभी पाठ पढ़ा दिये पढ़ाने वालों ने अपने हिसाब से,
विषय चुने तुमने, सबक अब अपना ही हिसाब ले आया है।
टीचर बोले प्रेरणा के स्रोत जंहा से फूटे ग्रहण कर लेना। जो चश्मा पत्थर से फूटे, उसका पानी हमेशा मीठा होता है।
उन्होने मेरे सर पर हाथ रखा और कहा “कुछ समझे”।
रास्ते में ठोकर लगे और गिर गये। गिरने के बाद ज़मीन पर अगर अशर्फी पड़ी हुइ मिल जाए तो इसका एक तो मतलब ये है कि ये पहले से तय था कि आपको ठोकर लगेगी और आपको उसका फल मिलेगा शीघ्र मिलेगा। लेकिन नकारात्मक सोच ये कहती है क्यों न मै और ठोकर खाउं ताकि मुझे और अशर्फी मिले।
आगे निकल गये।