मै किस नाम से पुकारूं तुझे,
नज़र मिलती है तो जैसे
कोई रिश्ता कायम हो छाप सा,
पलक बन्द होती है दिखता है
साफ साफ एक खाब सा।
बरसों मिलते रहे जिनसे
वो न तो पास था न दूर थे।
वो सफर में एक दिन क्या मिला
मैं अकेला न रहा जब मुझसे
वो हुआ दो चार सा ।
वो लागत पूछ रहा था
मुझसे मेरे इन्तज़ार की।
इतना टूटफूट सोचकर चला था
ये खसारा करके भी कहॉ हुआ नुक्सान सा।
खसारा- घाटा
Thanks
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