तू ही सूरज का हर शाम डूबना देखता है, भटकता खुद है इल्जा़म आफताब के सर धर दिया।

चाँद को चाँद कह दिया, उसने सुना ही नहीं,
चन्द्रमुखी नाराज़ है गैर को क्यों चाँद कह दिया।।

पारो को चाँद देव दास में मिला, जब न मिला,
उसने उलाहना भेज शिकायत भरी बदरी से कह दिया।।

जिसके पास न था, उसी के साथ हमेशा रहा,
दिल हमेशा सोचता रहा, मन जब हुआ उठके चल दिया।

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